गोवा नाइट क्लब अग्निकांड: टिहरी के सतीश की मौत से गांव में मातम, जनवरी में घर लौटने वाला बेटा अब लौटेगा अर्थी में

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गोवा नाइट क्लब

गोवा के एक नाइट क्लब में हुए भीषण अग्निकांड ने न सिर्फ राज्य को हिला दिया, बल्कि उत्तराखंड के टिहरी जिले में भी गहरा शोक फैला दिया है। इस हादसे में उत्तराखंड के पांच युवकों की मौत की पुष्टि हुई है। इनमें टिहरी जनपद के चाह गाडोलिया गांव के रहने वाले 28 वर्षीय सतीश सिंह राणा भी शामिल हैं। सतीश की मौत की खबर जैसे ही गांव पहुँची, पूरा माहौल मातम में बदल गया। परिवार और गांव के लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है।

सतीश सिंह राणा, सुरेंद्र सिंह राणा और संगीता देवी के चार बच्चों में सबसे बड़े थे। दो बेटों और दो बेटियों वाले इस परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी का बड़ा हिस्सा सतीश ही संभालते थे। गांव में सीमित रोजगार अवसरों के चलते वे चंडीगढ़ में नौकरी करते थे और लगभग दो साल पहले बेहतर अवसर मिलने पर गोवा चले गए थे। वहीं एक होटल से जुड़े नाइट क्लब में उनकी तैनाती थी।

परिजनों के अनुसार, सतीश जनवरी माह में घर आने वाले थे। परिवार बेसब्री से उनकी वापसी का इंतजार कर रहा था, लेकिन किस्मत कुछ और ही लिखकर लाई। हादसे की खबर के बाद उनके छोटे भाई सौरभ भी चंडीगढ़ से सीधे गोवा पहुंच गया। वहीं सतीश के साथ काम करने वाले विजेंद्र और अरविंद मृतक के शव को गांव लाने के लिए निकल चुके हैं। बताया जा रहा है कि शव रात करीब सात से आठ बजे तक गांव पहुँच सकता है।

गांव के लोग लगातार सतीश के घर पहुंचकर परिवार को ढांढस बंधा रहे हैं। खेतीबाड़ी और मजदूरी कर परिवार चलाने वाले सुरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटे की मौत ने परिवार की उम्मीदों और भविष्य के सपनों को भी चूर कर दिया है। गांव के बुजुर्गों और युवाओं के अनुसार सतीश शांत, मेहनती और जिम्मेदार लड़का था। उसकी मौत से पूरा क्षेत्र दुखी और स्तब्ध है।

हादसे में अपनी जान गंवाने वाले सतीश का अंतिम संस्कार कल, नौ दिसंबर को पैतृक घाट पर किया जाएगा। गांव के लोग और रिश्तेदार अंतिम विदाई के लिए जुटने लगे हैं। उधर, पूरे उत्तराखंड में इन पांच युवकों की मौत को लेकर शोक और आक्रोश दोनों है, क्योंकि हादसे के बाद उठ रहे सवाल सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी कमियों की ओर इशारा कर रहे हैं।

इस दर्दनाक घटना ने एक बार फिर याद दिलाया है कि दूर शहरों में रोजी–रोटी की तलाश में जाने वाले पहाड़ी युवाओं के सामने कितनी जोखिम भरी परिस्थितियाँ होती हैं। परिवार अब सिर्फ न्याय और सरकार की मदद की उम्मीद में है, ताकि उनके बेटे की मौत व्यर्थ न जाए।

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