पहाड़ों में वन्यजीवों का बढ़ता आतंक, बंदर-लंगूर से त्रस्त ग्रामीण बोले-गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं लोग

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बंदर-लंगूर

बंदर-लंगूर

पिथौरागढ़ जनपद के पहाड़ी गांवों में मानव-वन्यजीव संघर्ष गंभीर रूप लेता जा रहा है। पहले ही पलायन से जूझ रहे गांवों में अब बंदर, लंगूर, जंगली सुअर, तेंदुआ और भालू ग्रामीणों की जिंदगी पर भारी पड़ने लगे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि खेतों, बागानों से निकलकर वन्यजीव अब घरों के भीतर तक घुसने लगे हैं, जिससे ग्रामीणों में भय और आक्रोश दोनों बढ़ता जा रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि बंदर और लंगूर नारंगी, नींबू, माल्टा जैसे फलों से लदे बागानों को पूरी तरह तबाह कर रहे हैं। फल खाने के साथ-साथ वे टहनियां तोड़ रहे हैं और पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हरीश सिंह बताते हैं कि लंगूर अब घरों में घुसकर अनाज, राशन और मवेशियों की चारा-पत्ती तक ले जा रहे हैं। उन्हें भगाने पर हमला कर देते हैं, जिससे बुजुर्गों और महिलाओं में डर बना रहता है।

विनियाखोला की निर्मला देवी का कहना है कि पहले इन वन्यजीवों की संख्या सीमित थी, लेकिन अब तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि यदि समय रहते इन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो एक दिन बंदर और लंगूर ग्रामीणों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर देंगे। खेती पहले ही घाटे का सौदा बनती जा रही है और अब फसलों का बचना भी मुश्किल हो गया है।

थल, झूलाघाट, गंगोलीहाट, धारचूला, मुनस्यारी और नाचनी क्षेत्रों में भी हालात चिंताजनक हैं। जंगली सुअर खेतों को खोदकर फसलों को नष्ट कर रहे हैं, जिससे कई खेत बंजर होने लगे हैं। वहीं तेंदुआ और भालू के हमलों से बीते एक महीने में आठ लोग घायल हो चुके हैं। घास काटने या खेतों में काम करने जाना ग्रामीणों के लिए जोखिम भरा हो गया है।

ग्रामीणों का कहना है कि जब जंगल, खेत और घर—तीनों असुरक्षित हो जाएं, तो गांव में रहना कठिन हो जाता है। उन्होंने वन विभाग से ठोस और स्थायी समाधान की मांग की है। ग्रामीणों का साफ कहना है कि यदि वन्यजीवों के आतंक से जल्द निजात नहीं मिली, तो खेती-किसानी और रोजगार छोड़कर पलायन ही एकमात्र विकल्प रह जाएगा।

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