टपकेश्वर महादेव में लौटी आस्था की चमक, शिवलिंग पर फिर सुशोभित हुआ चांदी का नाग

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टपकेश्वर महादेव

टपकेश्वर महादेव

देहरादून के प्राचीन और आस्था के प्रमुख केंद्र टपकेश्वर महादेव मंदिर में एक बार फिर श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। मंदिर के शिवलिंग पर सदियों से विराजमान चांदी का नाग मंगलवार रात विधि–विधान के साथ अपने मूल स्थान पर पुनः स्थापित कर दिया गया। करीब ढाई महीने पहले हुई इस चोरी की घटना ने न केवल मंदिर प्रशासन बल्कि शहर भर के श्रद्धालुओं की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचाया था।

चोरी की घटना सामने आने के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर चांदी के नाग को बरामद कर लिया था। हालांकि कानूनी प्रक्रिया के चलते यह चांदी का नाग लंबे समय तक पुलिस मालखाने में जमा रहा। न्यायालय से आदेश मिलने के बाद मंगलवार देर शाम मंदिर प्रशासन को लगभग 200 ग्राम वजनी चांदी का नाग सौंपा गया। इसके बाद टपकेश्वर महादेव सेवादल के पदाधिकारियों की मौजूदगी में इसे पूरे विधि-विधान और पूजा-अर्चना के साथ शिवलिंग पर पुनः स्थापित किया गया।

टपकेश्वर महादेव सेवादल (रजि.) के कार्यकारिणी सदस्य अनुभव अग्रवाल ने बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद नाग को थाने से लाया गया और रात में विशेष पूजा के बाद भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर पुनः विराजमान किया गया। इस अवसर पर मंदिर परिसर ‘हर-हर महादेव’ के जयकारों से गूंज उठा। चांदी के नाग की वापसी से मंदिर प्रबंधन के साथ-साथ श्रद्धालुओं में भी गहरी खुशी देखी गई।

टपकेश्वर महादेव मंदिर न केवल देहरादून बल्कि पूरे देश में आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ बताया जाता है और लगभग 6000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, जिसे द्रोण गुफा कहा जाता है। मान्यता है कि कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने यहीं तपस्या की थी।

लोककथाओं के अनुसार, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के दूध के लिए रोने पर भगवान शिव ने गुफा की छत से दूध की धारा प्रवाहित की थी। समय के साथ यह धारा जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी चट्टान से बूंद-बूंद टपककर शिवलिंग का अभिषेक करती है। इसी कारण इस स्थान को टपकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

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