Uttarakhand : 24 साल में राज्य ने हासिल की कई उपलब्धियां, लेकिन पलायन-रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ जैसे मुद्दों पर आज भी सवाल…
9 नवंबर 2000… ये तारीख इतिहास में उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज है। उत्तराखंड ने आज 9 नवंबर को अपने स्थापना के 24 साल पूरे कर लिए हैं। पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को 27वें राज्य के रूप में भारत गणराज्य में शामिल किया गया। 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था। लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। बीते 24 साल में उत्तराखंड ने काफी कुछ उपलब्धियां हासिल की। लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो अभी पाना बाकी है। राज्य आंदोलनकारियों की मानें तो जिन अपेक्षाओं के साथ उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड को बनाया गया था। उन अपेक्षाओं के अनुरूप उत्तराखंड नहीं बन पाया। कई क्षेत्रों में अभी बहुत कुछ किया जाना अभी भी बाकी है। पहाड़ी प्रदेश होने के कारण पहाड़ का विकास होना था। परंतु आज पहाड़ खाली हो गए हैं। पहाड़ों से पलायन का दस्तूर आज भी जारी है। सरकार ने पहाड़ से पलायन रोकने की कोशिश करते हुए कई योजनाएं लागू की, परंतु पहाड़ से पलायन नहीं रुक पाया। राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि रोजगार उपलब्ध कराए जाने को लेकर सरकार फेल रही। युवा प्रदेश छोड़कर दूसरे प्रदेश और देश की ओर रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं।
24 सालों में पलायन और रोजगार के आंकडे:-
“प्रवास संकट गहराता जा रहा है। 2008 से 2018 के बीच, 502,717 लोग राज्य से पलायन कर गए, यानी सालाना औसतन 50,272 लोग। हालांकि, 2018 से 2022 के बीच, 335,841 लोग राज्य से चले गए, यानी सालाना 83,960 लोग पलायन कर रहे हैं। यह तेज वृद्धि इस बात का स्पष्ट संकेत है कि समस्या नियंत्रण से बाहर हो रही है।”
आंकड़ों को और भी विस्तार से देखें तो हर दिन 230 लोग उत्तराखंड छोड़ रहे हैं, जबकि पिछले 10 साल की अवधि में यह संख्या 138 प्रतिदिन थी। यह चार साल में हर दिन 92 लोगों के पलायन की महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है। और अब उत्तराखंड में घोस्ट विलेज की संख्या बढ़कर 1,792 हो गयी है। हालांकी उत्तराखंड में बीते एक वर्ष में रोजगार के अवसर बढ़ने से बेरोजगारी घटी है। सभी आयु वर्गों पर नजर डालें, तो इसकी दर 4.5 फीसदी से घटकर 4.3 प्रतिशत पर आ गई है। 15-29 वर्ष के आयु वर्ग में 14.2 से घटकर 9.8 प्रतिशत पर आ गई है। उत्तराखंड में एक साल के दौरान युवा बेरोजगारी में 4.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद इन 24 सालों में न सिर्फ सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घटी है। बल्कि, शिक्षकों की संख्या भी घट गई है। दरअसल, राज्य गठन के समय प्रदेश में जूनियर बेसिक स्कूलों की संख्या 12,791 थी। जो बढ़कर 13,422 हो गई है। लेकिन राज्य गठन के समय छात्रों की संख्या 11,20,218 थी, जो अब घटकर 4,91,783 तक सीमित हो गई है। हालांकि, स्कूलों में छात्र ही नहीं घटे, बल्कि शिक्षक भी घट गए हैं। क्योंकि, राज्य गठन के समय करीब 28,340 शिक्षक थे। ऐसे में अब 26,655 शिक्षक ही रह गए हैं। इसी तरह राज्य गठन के समय सीनियर बेसिक स्कूलों की संख्या 2,970 थी, जो बढ़कर 5,288 हो गई, लेकिन छात्रों की संख्या गठन के दौरान 5,47,009 थी। जो अब घटकर 5,04,296 हो गई है। ऐसे में छात्रों की कमी के चलते अभी तक करीब 3000 स्कूल बंद हो गए हैं।
हाड़ में स्वाथ्य सेवा एक गंभीर समस्या:-
पूरे पहाड़ में ही स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली एक गंभीर समस्या है। लोग आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए श्रीनगर, देहरादून और ऋषिकेश के बड़े अस्पतालों के चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपने सरकार के दस-दस वर्ष के शासन में इसे बेहतर करने में नाकामयाब रही है बल्कि इस दौरान स्थतियाँ और ख़राब हुई हैं।
जिसके चलते राज्य में ऐसी कई कहानियां सामने आती हैं जिनमें मरीज़ों को सही समय पर एम्बुलेंस न मिलने, उचित उपचार की कमी, डॉक्टरों की सीमित उपलब्धता और कई और कारणों के चलते अपनी जान गंवानी पड़ती है। लेकिन इस हालात में भी सरकारों की प्राथमिकता में ये नज़र नही आता।